भजले हरी हरी , ओ पगले भजले हरी हरी !!
सुन मानव अब त्याग भी झूठा मान भिमान !
सुन मानव अब त्याग भी झूठा मान भिमान !
दो दिन के ये ठाट है, दो दिन की ये शान !
भजले हरी हरी , ओ पगले भजले हरी हरी !!
दाम बिना निर्धन दुखी तृष्णा बाद धनबान !
दाम बिना निर्धन दुखी तृष्णा बाद धनबान !
कहुं न सुख इस जग में देखे चरों धाम !!
भजले हरी हरी , ओ पगले भजले हरी हरी !!
सर्वनाश के मूल है ये सब भोग विलास !
सर्वनाश के मूल है ये सब भोग विलास !
खारे पानी से बुझे कब अमृत की प्यास !
भजले हरी हरी , ओ पगले भजले हरी हरी !!
No comments:
Post a Comment